भारतीय मिट्टियाँ (INDIAN SOILS)

भारतीय मिट्टियाँ (INDIAN SOILS)





       Geography of India



भारत की मृदा  -

      मृदा शब्द की उत्पति लैटिन भाषा के शब्द सोलम से हुई है l जिसका अर्थ है,फर्श l बकमैन एवम् ब्रैडी के अनुसार मृदा वह प्राकृतिक पिण्ड है जो विच्छेदित एवम् अपक्षयित खनिजों एवम् कार्बनिक पदार्थों के परिवर्तनशील मिश्रण से परिच्छेदिका के रूप में संश्लेषित होती है l यह पृथ्वी को एक पतले आवरण के रूप में ढके रहती है l जल और वायु की उपयुक्त मात्रा के सम्मिश्रण से पौधे को यांत्रिक अवलम्ब और आंशिक आजीविका प्रदान करती है l

      मृदाजनन एक जटिल तथा निरंतर होने वाली प्रक्रिया है l पैतृक शैलें, जलवायु, वनस्पति, भूमिगत जल एवम् सूक्ष्म जीव सहित अनेक कारक मिट्टी को आधारभूत खनिज तथा पोषक तत्व प्रदान करती है, जबकि जलवायु मिट्टी के निर्माण में रासायनिक तथा सूक्ष्म जैविक क्रियाओं को निर्धारित करती है l

    मृदा के संघटन में निम्न पदार्थ भाग लेते हैं –

* ह्यूमस अथवा कार्बनिक पदार्थ- लगभग 5 से 10%

* खनिज पदार्थ– लगभग 40 से 45%

* इसके अलावा मृदा जीव व मृदा अभिक्रिया भी मृदा संघटन में भाग लेती है l

* मृदा जल- लगभग 25%

* मृदा वायु- लगभग 25% 

      सभी प्रकार की मृदाओं में कार्बनिक पदार्थ कम या अधिक मात्रा में प्राय: कलिलीय पदार्थों के रूप में पाए जाते है l

 


भारतीय मृदा का वर्गीकरण

   भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद ने 1986 में देश में 8 प्रमुख तथा 27 गौण प्रकार की मिट्टियों की पहचान की गयी है l प्रमुख 8 प्रकार की मिट्टियाँ अधोलिखित है l

1. जलोढ़

2. लाल

3. काली

4. लैटेराईट

5. मरुस्थलीय

6. पर्वतीय

7. पीट व  दलदली

8. लवणीय व क्षारीय मृदायें l

1. जलोढ़ मिट्टियाँ –

   जलीय मिट्टियाँ विशाल, मैदानों, नर्मदा, तापी, महानदी, गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी की घाटियों एवं केरल के तटवर्ती भागों में लगभग 15 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर विस्तृत है l ये मिट्टियाँ नदियों द्वारा अपरदित पदार्थो से निर्मित है l ये हल्की भूरे से राख जैसे भूरे रंग की है तथा गठन में रेतीली से दोमट प्रकार की है l इन मिट्टियों में परिच्छेदिका उच्च भूमियों में अपरिपक्व तथा निम्न भूमियों में परिपक्व है l बाढ़ के मैदान की कांप को स्थानीय रूप से खादर कहा जाता है तथा पुरानी कांप, जो अपरदन से अप्रभावित होती है, बांगर कहलाती है l बांगर के निर्माण में चीका का प्रमुख योग होता है l

    यह दोमट या रेतीली दोमट प्रकार की मृदा है l इन मृदाओं में पोटाश व चुना प्रचुर मात्रा में मिलता है, फास्फोरस, नाइट्रोजन और जीवांश का अभाव होता है l यह मिट्टी धान, गेहूँ, गन्ना, दलहन, तिलहन, आदि की खेती के लिए उपयुक्त होती है l



2. लाल मिट्टियाँ –

   लाल मिट्टी का विस्तार देश में लगभग 6.1 लाख वर्ग कि.मी है l इस प्रकार यह मृदा देश का द्वितीय विशालतम वर्ग है l ये मिट्टियाँ तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, छतीसगढ़, ओडिशा तथा झारखण्ड के व्यापक क्षेत्रों तथा पश्चिमी बंगाल, दक्षिणी उत्तर प्रदेश तथा राजस्थान के कुछ क्षेत्रों में पाई जाती है l इसका लाल रंग लोहे के आक्साइड की उपस्थिति के कारण है l इसका गठन बालू से चीका तक प्रधानत: दोमट प्रकार का है l सिंचाई द्वारा इस मिट्टी में तम्बाकू, बाजरा, तीसी दलहन, गेहूँ आदि की खेती की जाती है l



3. काली मिट्टियाँ –

   काली मिट्टियों को स्थानीय भाषा में रेगुर भी कहा जाता है तथा अन्तर्राष्ट्रीय रूप से उष्ण कटिबंधीय चरनोजम कहा जाता है l इस मिट्टी का विस्तार लगभग 5.64 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल पर है l यह भारतीय मृदा का तीसरा विशालतम वर्ग है l इसका विकास महाराष्ट्र, पश्चिमी मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु एवं उत्तर प्रदेश पर दक्कन लावा के अपक्षय से हुआ है l इसकी सरंचना सामान्यत: चीकामय डलीयुक्त तथा कभी कभी भंगुर होती है l इसमें नाइट्रोजन, फास्फोरस तथा जैविक पदार्थों की कमी होती है l इसमें जल धारण करने क्षमता सर्वाधिक होती है l इस मृदा को स्वत: जुताई वाली मृदा की उपमा दी गयी है l इसमें उर्वरता अधिक होती है, अतएव ये जड़दार फसलों, जैसे– कपास, तूर, खट्टे फलों तथा चना, सोयाबीन, तिलहन मोटे अनाजों, सफोला आदि की खेती के लिए उपयुक्त रहती है l

4. लैटेराइट मिट्टियाँ –

           ये लगभग 1.26 लाख वर्ग कि.मी क्षेत्र पर विस्तृत हैं देश में इस प्रकार की मृदा का सर्वाधिक क्षेत्रफल क्रमशः केरल, महाराष्ट्र एवं असोम में पाया जाता हैं l लैटेराइट मिट्टियाँ का स्वरूप ‘ईट’ जैसा होता है l भीगने पर ये कोमल तथा सूखने पर कठोर व डलीदार हो जाती हैं l ये उष्ण कटिबन्ध की प्रारुपिक मिट्टियाँ हैं, जहाँ मौसमी वर्षा होती है l यह बहुत ही अपक्षालित मृदा है, क्रम से भीगने तथा सूखने पर इनकी सिलिकामय पदार्थ निक्षलित हो जाता है l

     इनका लाल रंग लोहे के आक्साइड की उपस्थिति के कारण होता है l ये मिट्टियाँ सामान्यत: लौह तथा एल्युमिनियम में समृद्ध होती हैं l इनमें नाइट्रोजन, पोटाश, चूना तथा जैविक पदार्थ की कमी होती है l ये प्राय: कम उर्वरता वाली मिट्टियाँ हैं किन्तु उर्वरकों के प्रयोग से चाय, कहवा, रबर, सिनकोना तथा काजू आदि विविध प्रकार की बागानी खेती सफलतापूर्वक की जाती हैं l



5. मरुस्थली मिट्टियाँ –

     मरुस्थली मिट्टियों का विस्तार राजस्थान, सौराष्ट्र, कच्छ, हरियाणा तथा दक्षिणी पंजाब के लगभग 1.42 लाख वर्ग कि.मी क्षेत्र पर है l ये मिट्टियाँ बलुई से बजरीयुक्त है जिनमें जैविक पदार्थ तथा नाइट्रोजन की कमी एवं कैल्शियम कार्बोनेट की भिन्न मात्रा पायी जाती है l

     इनमें घुलनशील लवणों तथा फास्फोरस का उच्च प्रतिशत मिलता है, किन्तु नमी की मात्रा कम होती है l सिंचाई द्वारा इनमें ज्वार, बाजरा, मोटे अनाज व सरसों आदि उगाये जाते हैं l



6. पर्वतीय मृदायें –

         इसे वनीय मृदा भी कहा जाता है इसका विस्तार 2.85 लाख वर्ग कि.मी क्षेत्र में पाया जाता है l ये नवीन व अविकसित मृदायें हैं जो कश्मीर से अरुणांचल प्रदेश तक फैली है l इसमें पोटाश, चूना व फास्फोरस का अभाव पाया जाता है पर जीवांश प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं l पर्वतीय ढालों पर सेब, नाशपती व आलूचा आदि फल वृक्ष उगाये जाते है l इस प्रकार की मृदायें अम्लीय स्वभाव की होती हैं l



7. पीट तथा दलदली मृदायें –

     पीट मृदायें नम जलवायु में बनती हैं सड़ी वनस्पतियों से बनी पीट मिट्टियों का निर्माण केरल तथा तमिलनाडु के आर्द्र प्रदेशों में हुआ है l इन मृदाओं में जैविक पदार्थ व घुलनशील नमक की मात्रा अधिक होती है l किन्तु इनमें पोटाश तथा फास्फेट की कमी होती है l ये मृदायें काली, भारी व अम्लीय होती है l

         दलदलीय मृदायें तटीय उड़ीसा, सुंदरवन, उत्तरी बिहार के मध्यवर्ती भागों तथा तटीय तमिलनाडु में पायी जाती हैं l निचले क्षेत्रो में जलाक्रांति तथा अवायु दशाओं में इस मृदा का निर्माण होता है l इसमें फैरस आयरन होने से प्राय:इनका रंग नीला होता है l तथा इसमें कार्बनिक पदार्थ की मात्रा 40 से 50 प्रतिशत होती है l इसमें धान उगाया जाता है l

8. लवणीय तथा क्षारीय मृदायें –

          ये मिट्टियाँ पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, बिहार, उत्तर प्रदेश तथा महाराष्ट्र के शुष्क भागों में लगभग 1.7 लाख वर्ग कि.मी क्षेत्र पर विस्तृत हैं l ऐसी मिट्टियाँ पंजाब और उत्तर प्रदेश के नहर सिंचित तथा उच्च जल स्तर वाले क्षेत्रों में उत्पन्न हो गयी हैं l

   क्षारीय मृदाओं में नाइट्रोजन का अभाव पाया जाता है l इस प्रकार की मृदाओं में बरसीम, धान, गन्ना,व अमरुद, आंवला, फालसा तथा जामुन आदि के लवण प्रतिरोधी फसलें व फल वृक्ष पाये जाते हैं l


1. लैटेराइट मिट्टी का प्रयोग होता है l

(अ) कृषि कार्यों के लिए

(ब) बागवानी के लिए

(स) भवन निर्माण के लिए

(द) बर्तन बनाने के लिए  (स)


2. कपास की काली मिट्टी में निम्न में से किसका आधिक्य है-

(अ) इलाइट

(ब) केओलिनाइट

(स) क्लोराइट

(द) मोंटमोरिलोनाइट   (द)


3. अत्यंत सूक्ष्म कणों वाली मिट्टी है –

(अ) चीका मिट्टी

(ब) बलुई मिट्टी

(स) दोमट मिट्टी

(द) पथरीली मिट्टी  (अ)


4. दक्षिणी भारत में ज्वालामुखी क्रिया से संबंधित है-

(अ) मिट्टी

(ब) स्थलाकृति

(स) वनस्पति

(द) बस्ती प्रतिरूप  (अ)


5. गंगा के मैदान में उर्वरकता के बने रहने का कारण है-

(अ) लगातार सिंचाई

(ब) मानसून वर्षा

(स) वार्षिक बाढ़ एवं नवीन मृदा का जमाव

(द) ‘ऊसर’ भूमि में सुधार (स)


6. उत्तर प्रदेश में कौनसी मिट्टी का क्षेत्र अधिक है ?

(अ) जलोढ़

(ब) लाल- पीली

(स) काली

(द) लैटराइट (अ)


7. भारत में लाल पीली मिट्टी मुख्य रूप से कहाँ पाई जाती है ?

(अ) उत्तर प्रदेश-बिहार

(ब) मध्य प्रदेश–राजस्थान  

(स) महाराष्ट्र-कर्नाटक

(द) बिहार- पश्चिमी बंगाल (ब)


8. कौनसा युग्म सही नहीं है ?

(अ) कांप मिट्टी – उत्तर प्रदेश

(ब) लाल और पीली मिट्टी – तमिलनाडु

(स) लैटराइट मिट्टी – पंजाब

(द) काली मिट्टी – महाराष्ट्र  (स)


9. टेरोरोजा मृदा निम्नलिखित में से कौन-सी फसल से संबन्धित है –

(अ) चाय

(ब) काफ़ी

(स) कपास

(द) गन्ना (ब)


10. किस प्रकार की मिट्टी अधिकतम पानी संजोये रखती है-

(अ) दोमट

(ब) बलुई

(स) मटियार

(द) लाल  (स)


11. भारत में काली कपासी मृदा के निर्माण में सहायक शैलें है-

(अ) ग्रेनाईट

(ब) बेसाल्ट

(स) चुने का पत्थर

(द) बलुआ पत्थर  (ब)


12. भारत के दक्कन प्रायद्वीप पठार पर किस मिट्टी का अभाव पाया जाता है –

(अ) पोड्जोल

(ब) लाल एवं पीली मिट्टी

(स) लैटेराइट मिट्टी

(द) काली मिट्टी  (अ)


13. गुजरात प्रदेश अधिकांशत: आच्छादित है-

(अ) काली मिट्टी से

(ब) लैटेराइट मिट्टी से

(स) लाल मिट्टी से

(द) मरुस्थलीय मिट्टी से (अ)


14. भारत में किस मिट्टी का विस्तार सर्वाधिक क्षेत्रफल पर है ?

(अ) काली

(ब) जलोढ़

(स) लैटेराइट

(द) लाल  (ब)


15. भारत के उत्तरी मैदान में किस मृदा का विस्तार अधिक है ?

(अ) काली

(ब) लाल

(स) जलोढ़

(द) लैटेराइट (ब)


16. पीट मिट्टी मुख्यतः पाई जाती है –

(अ) कश्मीर

(ब) केरल

(स) गुजरात

(द) राजस्थान  (ब)


17. किस प्रकार की मिट्टी के लिए न्यूनतम उर्वरक की आवश्यकता होती है ?

(अ) लाल मिट्टी

(ब) जलोढ़ मिट्टी

(स) लैटेराइट

(द) काली मिट्टी  (ब)

    

18. भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद्  ने भारतीय मिट्टियों को कुल कितने मुख्य भागों में बाँटा है ?

(अ) 6

(ब) 7

(स) 8

(द) 9    (स)


19. जलोढ़ मृदा देश के कुल कितने प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्रफल में स्थित है ?

(अ) 20%

(ब) 24%

(स) 30%

(द) 35% (ब)


20. लोहांश व जीवांश मिलने से मृदा का रंग कैसा हो जाता है ?

(अ) नीला

(ब) पीला

(स) काला

(द) लाल   (स) 


SANDEEP

Assistant Professor (GEOGRAPHY)

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