बागाती कृषि

बागाती कृषि

 

बागाती कृषि

बागाती कृषि में चाय , कहवा, कोको व तम्बाकू व मसालों की कृषि को शामिल किया जाता है | इन फसलों का भारत में विश्व स्तरीय उत्पादन हो रहा है, जब की कोको उत्पादन हाल ही में दक्षिण भारत में प्रारम्भ हुआ है |

भारत की प्रमुख फसलें –

चाय-

चाय एक पेय पदार्थ है, जिससे स्फूर्तिदायक थीन या टेनिक अम्ल मिलता है | यह केमिलिया वनस्पति परिवार का सदाबहार पौधा है | जिसका द्भव 16 वीं शताब्दी में चीन के चांग-जियांग घाटी से माना जाता है | जहाँ से 1840 में लार्ड विलियम बैंटिंग द्वारा चीन से लाकर भारत के उतरी-पूर्वी क्षेत्र में लगाया गया |

वर्तमान समय में भारत चाय उत्पादन की दृष्टी से विश्व में प्रथम तथा निर्यात की दृष्टी से द्वितीय स्थान रखता है | भारत में चाय रोपण विधि द्वारा तैयार की जाती है | सर्वप्रथम क्यारियों में पौध तैयार की जाती है | पौध को अक्टूम्बर – नवम्बर में बागानों में लगाया जाता है | अप्रेल तक पौधों से चाय की पतियाँ तैयार हो जाती है | एक पौधा 10 से 15 वर्ष तक चलता है | तथा वर्ष में तीन बार चाय की पतियाँ प्राप्त होती हैं |

चाय उत्पादन की भौगोलिक दशाऐ –

तापमान –

चाय का पौधा उष्ण व उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्र में उत्पादित होता है इस पौधे के लिए 24 डिग्री से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान अनुकूल रहता है I

वर्षा –  

उच्च तापमान के साथ – साथ उच्च वर्षा भी चाय के लिए आवश्यक है | चाय का उत्पादन ढाल युक्त क्षेत्रो में किया जाता है |

जहां वर्षा जल प्रवाहित हो कर चला जाएँ |

150 CM से 250 CM वार्षिक वर्षा अनुकूल मानी जाती है |

इससे अधिक वर्षा में भी चाय का उत्पादन किया जा सकता है |

चाय के उत्पादन में प्रात : कालीन कोहरा लाभकारी होता है |

भूमि –

अन्य फसलों के समान चाय के लिए समतल भूमि की आवश्यकता नहीं रहती है I क्योंकि समतल भूमि में जल रुक जाता है I चाय का उत्पादन पठारी व पहाड़ी क्षेत्रों में 600-1800 M. की ऊंचाई पर ढाल युक्त क्षेत्र में किया जाता हैं |

ढल के साथ साथ उपजाऊ मिट्टी का होना भी आवश्यक हैं |

वर्तमान समय में रासायनिक खाद का उपयोग भी आधिक होने लगा है |

मानव श्रम –

कच्ची पतियों को छोड़कर पकी हुई पतियां कांट छांटकर तोड़ी जाती है I इसलिए सस्ते श्रमिकों की अधिक आवश्यकता होती है | चाय की प्रमुख व्यापारिक फसलें –

1.  काली चाय (भारत व श्रीलंका)

2.  हरी चाय या सेंचा (चीन)

3.  गट्टी चाय जो डंठल  से बनती है

4.  उलुंग चाय (काली व हरी चाय को मिला कर)

5.  पैराग्वे चाय (पैराग्वे व ब्राजील में)

भारत में चाय उत्पादन क्षेत्र को तीन भागों में बांटा गया है –

1.  उतरी-पूर्वी क्षेत्र ( असम,पश्चिमी बंगाल, उतर प्रदेश )

2.  उतरी-पश्चिमी क्षेत्र ( हिमाचल प्रदेश, उतराखंड )

3.  दक्षिणी क्षेत्र ( तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक )

असम – असम राज्य के 52% क्षेत्रफल पर चाय की कृषि की जाती है तथा ये भारत की 54% चाय उत्पादित करता है |

मुख्य चाय उताप्दक जिले – शिवसागर, कछार, लखीमपुर,दरांग, नवगांव, कामरूप, गोलपाड़ा, सिलचर है |

पश्चिमी बंगाल – भारत में उत्पादित चाय का 22% उत्पादित करता है I दार्जलिंग मुख्य चाय उत्पादक जिला है I

तमिलनाडु – चाय का उत्पदान निलगिरी तथा अन्नामलाई पहाड़ी क्षेत्रो में किया जाता है I यहाँ चाय की उतम किस्म का उतपादन होता है | इस चाय का निर्यात यूरोपियन देशों में किया जाता है |

मुख्य चाय उत्पादक जिले – नीलगिरी, अन्नामलाई, मदुरई, कन्याकुमारी,कोयम्बटूर आदि |

केरल – मुख्य चाय उत्पादक जिले – कोट्टायम, क्युलोंन,त्रिवेन्द्रम, त्रिचुर,  पालाघाट, कोजीकोड, कन्नोर, मालाबार, वायनाड आदि |

कर्नाटक - मुख्य चाय उत्पादक जिले – शिमोगा, काटूर, मैसूर, हसन |

हिमाचल – कांगड़ा, मंडी आदि

उतराखंड – देहरादून,अल्मोड़ा,चम्पावत, गड्वाल आदि |

झारखण्ड – रांची, हजारीबाग |

बिहार – पूर्णिया |

महाराष्ट्र – रत्नागिरी,सतारा,सांगली जिलों में चाय का उत्पादन होता है |

भारत में स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद प्रति हैक्तियर चाय के उत्पादन में वृदि हुई है | वर्तमान समय में औसत उत्पादकता 1885 KG प्रति हैक्तियर है |

चाय का विश्व व्यापर –

भारतीय चाय के मुख्य ग्राहक देश – ब्रिटेन, फ़्रांस, रूस, इटली, पोलेंड, जर्मनी, उतरी अमेरिकी देश, जापान, पश्चिमी एशियाई देश, नार्वे, सूडान आदि |

लेकिन कुल चाय निर्यात का 60% इंग्लैण्ड को किया जाता है |

कहवा- यह भी चाय के समान पेय पदार्थ होता है | इसे सर्वप्रथम 17 वीं शताब्दी में कर्नाटक में लगाया गया |

सबसे पहले यह पौधा बाबाबूदन नामक मुस्लिम फ़क़ीर ने कर्नाटक में एक पहाड़ी पर लगाया था | अब इस पहाड़ी को बाबाबूदन पहाड़ी के नाम से जाना जाता है | भारत विश्व की कुल कहवा का 3.2% भाग पैदा करता है |

कहवा उत्पादन की भौगोलिक दशाएँ –

तापमान – कहवे के पौध को धुप व तापमान दोनों से हाँनि होती है | कहवे के पौधो के पास छायादार पौधे लगाये जाते है |

अनुकूल तापमान 15 डिग्री से 18 डिग्री सेल्सियस होता है |

वर्षा - 150 से 200 CM वार्षिक वर्षा अनुकूल होती है, लेकिन जड़ो में वर्षा का जल एकत्रित नही होना चाहिए |

जल एकत्रित होने से बचाने के लिए पौधों को पहाड़ी ढालो पर उगाया जाता है |

मिट्टी – लोहा व चुना युक्त काली दोमट मिट्टी कहवा के लिए उपयुक्त होती है |

पतियों को चुनने के लिए श्रमिकों  की जरूरत होती है | व रासायनिक खाद का उपयोग भी फसल को प्रभावित करता है |

भारत में कहवा की फसलों के प्रकार - 

गुणवता के आधार पर फसलों के तीन उप भाग है |

1. अरेबिका – उतम किस्म का कहवा होता है | यह 750 से 1500 M. की ऊंचाई पर उत्पादित किया जाता है | भारत में 48% हिस्सा अरेबिका कहवा का है |

2. रोबेस्टा – अरेबिका कहवा से निम्न श्रेणी का कहवा है प्रति हैक्तियर उत्पादन अधिक होता है, रोग भी कम लगते है |

3. लाइबेरिका – भारत में इसका उत्पादन बहुत कम होता है यह निम्न श्रेणी का कहवा है |

कहवा उत्पादक प्रमुख राज्य –

कर्नाटक – कुल उत्पादन का 68% कहवा कर्नाटक राज्य पैदा करता है | दक्षिण व दक्षिण पश्चिम जिलों में कहवा के सघन बाग़ फैले है |

केरल – भारत के कुल उत्पादन का 20% कहवा केरल राज्य उत्पादन करता है |

मुख्य उत्पादक क्षेत्र – कोझीकोड, कन्नूर, मल्लापुरम, पालाघाट है |

तमिलनाडु – यहा नीलगिरी पहाड़ियों पर कहवा उत्पादित किया जाता है |

प्रमुख उत्पादक जिले - मदुरई, कन्याकुमारी,कोयम्बटूर, सेलम, तिरुनलवेली,रामनाथपुरम  आदि |

कहवा का निर्यात –

भारत कुल कहवा उत्पादन का 25% स्वयं उपयोग व 75% विदेशों को निर्यात भी करता है |

भारत में उत्पादित कहवा का निम्न देश उपयोग करते है, रूस, कनाडा, ब्रिटेन, स्वीडन, नार्वे, पोलैंड, फ़्रांस, जर्मनी, आस्ट्रेलिया, इराक |

तम्बाकू – तम्बाकू एक विदेशी पौधा है | सर्वप्रथम इसे 16 वीं शताब्दी में पुर्तगालीयों द्वारा दक्षिणी अफ़्रीकी क्षेत्र से लाकर लगाया गया था | तम्बाकू उत्पादन में (चीन प्रथम) भारत का द्वितीय स्थान है | भारत में तम्बाकू फसल अक व्यवसायिक फसल का रूप ले चूकी है | भारत तम्बाकू का दुसरे देशों में निर्यात करता है |

उत्पादन की अनुकूल परिस्थितियाँ –

तापमान – उष्णकटिबंधीय फसल है, इसे 16 से 18 डिग्री सेल्सियस तापमान की जरूरत होती है |

वर्षा – इस फसल को कम व अधिक वर्षा से हानि होती है |

इस की फसल के लिए 50 से 100 CM वार्षिक वर्षा पर्याप्त है | जड़ो में जल एकत्रित नहीं होना चाहिए |

जल के जमा होने से पौधों की जड़े गल जाती हैं | फसल पकते समय आकाश साफ व मौसम स्वच्छ होना चाहिए |

मिट्टी – इस फसल का उत्पादन बलुई व दोमट,कछारी मिट्टी में होता है |

इसके उत्पादन में अधिकतम रासायनिक खाद का प्रयोग किया जाता है |

इसके पौधों को लगाने, निराई-गुड़ाई, कटाई करने के बाद पतियों को सुखानें आदि में अधिक श्रमिकों की आवश्यकता होती है |

भारत में अलग-अलग किस्म की तम्बाकू बोई जाती है जिनमे दो किस्मे मुख्य है |

1 निकोटिन टुबैकम – भारत में कुल उत्पादित तम्बाकू में 94% तम्बाकू इसी किस्म की होती है | यह तम्बाकू उतम किस्म की है |

इस तम्बाकू की दो उप किस्म भी है |

(अ)     देशी  (ब) वर्जिनियन

 बीड़ी, सिगरेट, हुक्का, आदि में इसी तम्बाकू का प्रयोग किया जाता है |

 

 

SANDEEP

Assistant Professor (GEOGRAPHY)

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